भरे पेट की भाषा और ख़ाली पेट की भाषा में बहुत फ़र्क होता है। ख़ाली पेट मरने वाला व्यक्ति मौत से नहीं डरता। ऐसे ही लोगों को जब सड़को पर अपने घर गांव के लिए सफ़र करते हुए देखा तो रहा नहीं गया। मैं उनका दुख तो नहीं बांट सकता लेकिन उनकी ज़बान बनने की कोशिश तो कर ही सकता हूँ।दोस्तों एक ग़ज़ल के हवाले से ये कोशिश कर रहा हूँ।
भूख सड़कों पे लेके आई है
ज़िंदगी मौत की लड़ाई है
जिनके लॉकर में बंद है रोटी
मुल्क में उनकी रहनुमाई है
खिलखिलाते हैं बेबसी पर जो
उन दिमाग़ों में सिर्फ़ काई है
कितनी मजबूर हैं पढ़ो इनको
इन किताबों में बस रुलाई है
क्या ख़ता है जो जा रहे हैं घर
है बहन ये किसी का भाई है
इंतखाबात में हैं हम रुपया
वरना औकात अपनी पाई है
है असर इनकी बद्दुआओं में
इनके दुखड़ों की ये कमाई है
हौसला है बनज का ज़ालिम को
आंख झिझके बिना दिखाई है
बनज कुमार बनज
9326469538
One Comment
Mahi Sandesh
उम्दा