“निज भाषा उन्नति अहै, सबै उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, उठत है हिय में शूल।।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुण होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहे हीन के हीन।। ”
जी हाँ यह विचार व्यक्त किए थे हमारे आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह महान् साहित्य पुरोधा भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने।
युग युगान्तर से हमारे हृदयों में हमारे मन प्राण में रची बसी हिन्दी आज तक उस सम्मान जनक प्रतिष्ठित पद पर आसीन नहीं हो पाई है जिसकी वह वास्तविक अधिकारिणी है इससे अधिक लज्जाजनक बात हम भारतीयों के लिए क्या होगी।
यह तो हुई समाज की बात। अब आइए बात करते हैं समाज की सूक्ष्मतम इकाई परिवार के संदर्भ में। इस परिप्रेक्ष्य में वर्तमान में अधिकांशतः यह दृष्टिगत हो रहा है कि हम शब्दों से भले ही हिन्दी के हिमायती बनते हों हिन्दी प्रेमी कहलाते हों किन्तु अपनी संतानों को सम्पूर्ण शिक्षा हम अंग्रेज़ी माध्यम से ही दिलाते हैं क्योंकि हिन्दी को हम अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खड़े होने योग्य नहीं समझते। आज के संदर्भ में तो यह बात भी हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने निराधार सिद्ध कर दी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में हिन्दी में उद्बोधन देकर। यही नहीं हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री जी किसी भी देश में हों वे डंके की चोट पर हिन्दी में ही अपना भाषण दिया करते हैं। हिन्दी की विश्व पताका फहराने में मोदी जी को प्रयास अभूतपूर्व व अद्वितीय हैं। हमें उनसे प्रेरणा व शिक्षा लेनी चाहिए।
यह हम देशवासियों का सौभाग्य है कि वर्तमान में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी हिन्दी के प्रबल समर्थक एवं हिन्दी-प्रेमी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जी के पश्चात् मोदी जी ने संपूर्ण विश्व में हिन्दी को सम्मानित करने में जो अद्वितीय भूमिका निभाई है वह सराहनीय है, जिसमें प्रत्येक भारतवासी के लिए एक प्रेरणादायी संदेश भी निहित है। आज मोदी जी के सद्प्रयत्नों से हमारी हिन्दी अन्तरराष्ट्रीय नक्शे पर चहुंओर अपना वर्चस्व फैलाती दृष्टिगोचर हो रही है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। हमारी एक भूतपूर्व प्रखर नेत्री स्व. सुषमा स्वराज जी ने भी सुरक्षा परिषद में हिन्दी में भाषण दिया था जो सराहनीय था।
हमारी यह विडंबना रही है कि हम भारत वासी अपने ऊपर से अंग्रेजी के आधिपत्य को नकार कर अभी तक अपनी कोई एक भाषा निर्धारित नहीं कर सके हैं। विदेशी भाषा बुद्धिमत्ता का मापदंड नहीं है, केवल योग्यता बढ़ाने का साधन -मात्र है। भारत के अतिरिक्त विश्व का कोई राष्ट्र दूसरे देश की भाषा को अपनी राष्ट्र भाषा से उच्च स्थान नहीं देता।
हमारे द्वारा विदेशी भाषा को अपनी भाषा से ऊंचा मानना संपूर्ण विश्व के सम्मुख एक उपहास जनक कृत्य के समान है। इसको समाप्त किया जाना आवश्यक है।
“कोटि-कोटि कंठों की भाषा, जन-जन की मुखरित अभिलाषा।
हिन्दी है पहचान हमारी, हिन्दी हम सबकी परिभाषा।।”
यदि हम हिन्दी भाषा को उसका खोया हुआ गौरव पुनः हासिल कराकर उसे राष्ट्र भाषा के सर्वोच्च पद तक पहुंचाने के पक्षधर हैं तो सरकार की ओर से निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक होगा – – – – – –
-प्रशासन इस दिशा में कठोरतम कदम उठाए ।
-संपूर्ण भारत में शिक्षा नीति में एकरूपता हो। शिक्षा का माध्यम यम अनिवार्य रूप से हिन्दी भाषा हो।
– प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों के अंग्रेज़ी भाषा में बातचीत पर रोक व जुर्माना हो।
-संपूर्ण भारत में शिक्षा का एक ही पाठ्यक्रम हो।
-सरकारी व गैर सरकारी संगठनों व कार्यालयों में कामकाज अनिवार्यतः हिन्दी में हो।
-समस्त विज्ञान व तकनीकी शब्दावली की विशेषज्ञों की देखरेख में हिन्दी मानक शब्द कोश तैयार किया जाए।
-भारत सरकार के अधीन समस्त मंत्रीगण केवल हिन्दी भाषा में ही शपथ लें फिर चाहे वह केन्द्र हो या राज्य ।
-सभी प्रशासनिक व अन्य रोजगार संबंधी प्रतियोगी परीक्षाओं का माध्यम केवल और हिन्दी हो।
-देश में कार्यरत सभी बहुराष्ट्रीय अथवा विदेशी कंपनियों को कामकाज की भाषा हिन्दी रखना अनिवार्य हो।
-न्याय पालिका की ओर से दिए जाने वाले सभी फैसले हिन्दी में हों। यह इसलिए अनिवार्य होना चाहिए कि भारत की अधिकांश जनता हिन्दी माध्यम से शिक्षित या कम शिक्षित
-सर्वोच्च न्यायालय में किसी भी अपील के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त की जाए।
– प्रत्येक भारतीय के लिए हिन्दी के सम्मान का प्रश्न राष्ट्र की प्रतिष्ठा के समान होना चाहिए।
यदि भारत की आत्मा से साक्षात्कार करना है तो यह केवल हिन्दी के माध्यम से ही हो सकता है। आइए हम अपने देश के प्रधानमंत्री जी से प्रेरणा लेकर उनके पथ- प्रदर्शन में अपनी प्यारी हिन्दी की पहले अपने घर में और अंततः विश्व में एक सम्मान जनक अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में विजय-पताका फहराऐं।वह दिन दूर नहीं जब हमें अपने ही घर में अपनी ही भाषा की पहचान हेतु कोई विशेष “दिवस”, “सप्ताह” अथवा “पखवाड़े” आयोजित करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
अंततः मैं अपनी प्यारी हिन्दी की शान में कहना चाहूँगी–
“मांँ का जो स्थान है घर में वह कहलाता है सर्वोच्च।
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा स्थान है उसका सबसे उच्च।।”
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)