ऐ मालिक! आज तेरी दुनिया लाचार खड़ी
सोच समझ सब बेकार पड़ी!
गाड़ी मोटर रुकी सब दुनिया बंदपड़ी
जिंदगी जहाँ तहाँ वहीं रुक पड़ी!
ऐ मालिक!
तेरे रूप रंग से मानव ने खिलवाड़ किया!
उसके अहंकार को ए तूने बहुत सहन किया!
आज तेरी सहने की सीमा टूट गई!
तूने इस दुनिया का परित्याग किया
हम पाखंडियों से तू रुष्ट हुआ!
तुझे कष्ट दिया अन्जान ये दुनिया बिखर पड़ी!ऐमालिक!
इस सन्नाटे से गलियों मे जंगल का आभास हुआ!
घर आँगन में अंघकार की ललकार सुनाई पड़ी!
ना कोई ज्ञानी ना कोई विद्वानी सबकी बुद्धि मंद पड़ी!
तूने ऐसा सृजन किया तो सारी दुनिया सहम सी खड़ी!
ऐमालिक!
आज दुनिया तेरे सामने नतमस्तक किए खड़ी!
स्वदोष याचनाएं कर रहे हैं प्रार्थनाएं
माफी मांग रहे हैं सब
क्षमाकर इस कुकर्मी दुनियाको!
माफी मांग रहे हैं सब
आबाद कर ऐ मालिक इस दुनिया को!
माफ कर ऐ मालिक इस दुनिया को!
नहीं षड्यंत्र रचेंगे कोई
नही तैयार करेंगे कोई कोरोना!
माफ कर ऐ मालिक हमें
नहीं जाऐंगे तेरे खिलाफ
ऐमालिक!
तेरी दुनिया तेरे सामने नतमस्तक लाचार खड़ी
माफ कर हमें
फिर से आबाद कर हमें!
ऐ मालिक!
माफ कर हमें!
लेखिका
कुसुम त्यागी
ग्रहिणी
मेरठ