माही संदेश/ डॉ. गीता कौशिक-दिल्ली – – एक पुत्री के उद्गार पिता के लिए
विगत 6 मार्च 2020 आमला एकादशी का दिन, प्रातः 4:00 बजे ब्रह्म मुहूर्त में, हिंदी जगत का एक सितारा अस्त हो गया। जी हाँ !डाॅक्टर मदन लाल शर्मा , वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् , इस नश्वर भौतिक जगत को छोड़ गोलोक वासी हो गए। उनका जन्म गांव तरौली, तहसील छाता, जिला मथुरा ,उत्तर प्रदेश में हुआ था । वह अपने गांव ही नहीं, पूरे जिले के मेधावी होनहार बालक थे। बचपन से ही उनके सर पर मां का साया नहीं रहा । जिसकी वजह से बचपन से ही उनका जीवन संघर्षमय रहा। परंतु फिर भी झंझावातों को झेलते हुए, हिम्मत न हारते हुए, उन्होंने अथक परिश्रम करके एम ए हिंदी में प्रथम श्रेणी व प्रथम स्थान प्राप्त किया । पी -एच .डी व डी. लिट् की उपाधि प्राप्त कर उन्होंने प्राध्यापक की नौकरी की। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज के हिंदी विभाग ,से वे प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त हुए। तत्पश्चात उन्होंने 65 वर्ष की आयु में जो साहित्य रचना- कर्म आरंभ किया तो 85 वर्ष की आयु तक अनवरत साहित्य रचना करते रहे । “तीन लोक ते मथुरा न्यारी”( मथुरा – कथा, चंपू काव्य) को श्री कृष्ण को समर्पित करते हुए उन्होंने अपने रचना कर्म की इतिश्री की।इस दौरान उन्होंने महाकाव्य उपन्यास, कविता ,कहानी और समीक्षा हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
“उड़ती चील का अंडा ” उपन्यास में उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व का समायोजन किया है । उनके जीवन का उद्देश्य उनके द्वारा रचित काव्य संकलन “आजादी का राणा” की इन पंक्तियों में निहित है-
“कर्म है प्रधान सत्कर्म करो जीवन में,
लक्ष्य है यही चतुरवर्ग फल पाओगे।
सदाचार पालन से आत्म ज्योति दिव्य होती,
पाप के पहार को सहज लांघ जाओगे।
अन्नाहारी मिताहारी फलाहारी दुग्धाहारो ,
सदाचारी होता है इसे जो जान जाओगे।
होगा विकीर्ण दया भाव उर अंतर में, परोपकार पुण्य के सुधा को खींच लाओगे।””
“सादा जीवन उच्च विचार” के वे कायल थे। इसी मंत्र को उन्होंने अपने जीवन में अपनाया और इसी का ज्ञान अपने बच्चों और अपने छात्रों को दिया। जिंदगी भर वह सच्चे भारतीय और भारतीय संस्कृति के पोषक बने रहे। उनका हर प्रयास देश और समाज के कल्याण हेतु ही रहा। उनका साहित्य कर्म ,भारतीय संस्कृति और विचारधारा का दर्पण है।
मैं ,गुरु तुल्य, सच्चे पथ प्रदर्शक पूजनीय पिताजी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं—-
पिता, तुम ग्राम्य जीवन में पले बढ़े, पिता, तुम भारतीय संस्कारों से पोषित हो बढ़े।
पिता ,तुमने अध्ययन-अध्यापन को जीवन का ध्येय बनाया,
पिता, तुमने सदैव “सादा जीवन उच्च विचार” का हमें पाठ पढ़ाया ।
यद्यपि ,आज आप हमारे बीच नहीं हैं, फिर भी एक एहसास है कि-
आप यही हैं, यहीं कहीँ हैं ।
आपका रचना- कर्म हमें सतत् प्रेरणा देता रहेगा,
जीवन के पथ पर संस्कारों के साथ आगे बढ़ाता रहेगा……………….
डॉ. गीता कौशिक-दिल्ली