संकट के समय एक आम आदमी की पीड़ा और महामारी से लड़ने के हौसलों पर एक कविता …….
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तन पर नहीं है कपड़ा, मैं मास्क, सेनेटाइजर कहां से लाऊं
भूखा है मासूम दो दिनों से मुंह का निवाला कहां से लाऊं
ना हो कोई बीमारी, ना हो किसी की ऐसी कोई लाचारी
ना तरसे दो वक्त की रोटी को दुनिया बना दे ऐसी हमारी
कोई कर रहा है मानवता की सेवा कोई बाँट रहे हैं खाना,
बांध लेंगे पट्टी पेट पर, बचाना है देश को हमारी जिम्मेदारी
ये भारत है भारत जनाब यही महान संस्कृति है हमारी
इरादे फौलादी थे और आज भी …..हम हैं हिंदुस्तानी
मजबूर होगी देश छोड़ने को यह कोरोना महामारी
मंज़िल नही मिलेगी अगर भटकते रहे गलियो में यूँ ही
गुमराह तो वो लोग हो रहे है जो घर मे रुकते ही नहीं
डॉ. ज्ञान चन्द जांगिड़
पोस्ट-बघेरा
तहसील- केकड़ी
जिला-अजमेर (राजस्थान)