एक परिवार है। उसमें पति-पत्नी व उनकी एक सुपुत्री है। वे सभी आधुनिक जीवनयापन के बाद भी स्वास्थ्य के प्रति बेहद सजग हैं। बस एक ही बड़ी कमी है : वे तीनों डिनर रात को दस बजे करते हैं।
अनेक बार उनका बाहर घूमना होता है। आउटिंग। ज़ाहिर है कि दिन-विचरण और रात्रि-विचरण में अन्तर है। दिन में व्यक्ति धर्म और अर्थ के प्रति झुकाव रखता है : शाम हुई नहीं कि वह कामोन्मुख हुआ ! रात की आहट के साथ ही मन की अनेक दबी-छिपी इच्छाएँ ज़ोर मारने लगती हैं।
पति और पत्नी अभी-अभी डिनर करके लौटे हैं। बेडरूम में लेटते ही उन्होंने पास ही रखी एक स्ट्रिप से दो गोलियाँ निकाली हैं। आधे गिलास पानी के साथ एक-एक दोनों खा लेते हैं। यह ओमीप्रैज़ॉल है। आमाशय में पैदा हो रही अम्लीयता की निवारक दवा। फ़ार्मा-जाति से प्रोटोन-पम्प इन्हिबिटर। आश्चर्य तो तब होता है , जब आठ साल की बिटिया भी पेट में दर्द की शिकायत करते हुए दवा की माँग करती है। खाना क्या इतना स्पायसी था !
दुनिया-भर में एसिड-रिफ्लक्स के रोगियों की संख्या में बड़ा इज़ाफ़ा हुआ है। आमाशय में बनने वाले हायड्रोक्लोरिक अम्ल का ऊपर की ओर आहारनली व फिर मुँह तक में आ जाना। नतीजन ढेरों समस्याओं का जन्म। अनेक रोगों में वृद्धि। ऐसे दुःसम्बन्ध जिनके बारे में लोगों ने सुना तक नहीं। लोग ख़ूब खाने पर खर्च रहे हैं , फिर बीमारियों पर। बिना होश-ओ-हवास के।

एसिड-रिफ्लक्स से सायनुसायटिस का रिश्ता है , गले की घरघराहट ( होर्सनेस ) का भी। दमा भी ऐसे लोगों में पाया जाता है , यहाँ तक कि आहारनली का कैंसर भी। और ये सारे ख़तरे जिन अनेक कारणों से बढ़ जाते हैं , उनमें एक बड़ी वजह देर रात किया गया भोजन भी है। ( एसिड-रिफ्लक्स हमारे जानते हुए होता हो , ऐसा नहीं है। अनेक बार इतना कम अम्ल आहारनली से होता हुआ मुँह और श्वासनली से फेफड़ों में जाता है कि पता नहीं चलता। पर रोगों के जन्म के लिए इतना पर्याप्त है। नतीजन ढेरों बीमारियाँ। अरबों रुपयों का बड़ा खर्चा। )
क्या करें फिर ? प्रोटोन-पम्प-इन्हिबिटर खा लें ? ओमीप्रैज़ॉल ? लैंसोप्रैज़ॉल ? पैंटोप्रैज़ॉल ? जीवन-भर खाते रहें ? इन दवाओं के लम्बे सेवन से भी तो कैंसर का जोखिम पाया गया है। फिर ? इसके एवज में क्या यह उचित नहीं कि रात का भोजन ही त्याग दिया जाये अथवा बहुत कम सात बजे से पहले कर लिया जाए ?
एक गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट का अनुभव पढ़ रहा था। मित्र नहीं हैं , परिचित-भर हैं। वे प्रोटोन-पम्प-इन्हिबिटर कम लिखते हैं। बल्कि रोगियों से जीवनचर्या बदलने को कहते हैं। रात का भोजन त्यागिए। कम तो अवश्य कीजिए। कम-से-कम। चीनी और वसा की प्रचुरता वाली चीज़ें तो बहुत कम। और करना ही पड़े तो सात बजे से पहले। यथासम्भव।
लेकिन फिर सोचता हूँ कि यह आदमी कितना बावला कालिदास है। फ़ास्ट फ़ूड और फ़ार्मा , दोनों उद्योगों को अपना दुश्मन बनाये पड़ा है। अरबों की मुद्रा का घाटा करा रहा है। अपनी प्रैक्टिस भी घटा रहा है। मैं उनसे बात करता हूँ। वे हँस पड़ते हैं यह कहते हुए कि नॉन-फ़ार्मा उपचार जितना सरल दिखता है , होता नहीं। लोग कर न पाएँगे। लाख दलीलें देंगे नौ बजे फ़्रेंच फ्राइज़ खाने की। दस बजे कोल्ड ड्रिंक पीने की। ग्यारह बजे मदिरापान करने की। फिर कुछ फ़िलॉस्फर बनने लगेंगे। लम्बा जीना किसे है ? गोया जीकर एहसान कर रहे हों !
संसार की सबसे बड़ी इच्छा अमरता है और सबसे बड़ा दुःख मृत्यु हैं। अमरता असम्भव है और मृत्यु शाश्वत , इसलिए लोग वर्तमान में रमे हुए हैं। वर्तमान में कर्मरत होना अच्छा है , लेकिन भोगरत होने की अपनी बड़ी समस्याएँ ? उनका क्या ?
डिनर और दिन में दिन को चुनना समझदारी रहेगी, हमेशा।
…स्कन्द
