मैं मैं हूं
रक्त, मांस,
मस्तिष्क, मन, भावों
व विचारों से पूरित
एक जीवित आकार
मैं नहीं हूं
चांद -सी सुंदर
सूरज सी तेजोमय
मेरी आंखों में नहीं
है सागर सी गहराई
न कोई झील है
मेरी आंखों के नीचे
के काले घेरे,
मेरी बिधी हुई
उंगलियां,
मेरी खुरदरी
हथेलियां,
मेरी फटी एड़ियां,
मेरा संघर्ष
मेरा सौंदर्य है
परंतु मैं महान नहीं
मैं महानता व
देवित्व का बोझ
हटा देना चाहती हूं
अपने कंधों पर से
नहीं हूं मैं समर्पण
त्याग बलिदान
की मूरत
मैं नहीं होना चाहती
किसी का गीत
न बुलबुल
ना हिरनी
ना कोई गिलहरी
मैं होना चाहती हूं
एक सहज नारी
ताकि उड़ सकूं
स्वच्छंद ,भयमुक्त
अपने हिस्से के
आसमान में।
काजल शुक्ला
वरिष्ठ अध्यापक, अंग्रेजी
पता- शिवाजी नगर, बांरा, राजस्थान