जीवन की बूंदों से हार
औंधी पड़ी है दुनिया कराहती
कई दिलों के तार टूटे हैं
कई तारे बन जगमगा रहे
वह दर्द, वह तपिश सच्चाई की
उन बेबस आँखों में जिनमें दिखाई देती
थी कभी जिंदगी की खुशहाली
चमका करते थे रौशनी के समुन्दर
कण-कण जीवन की बूंदों से हार
आज रेत की चादर ओढ़ ली है
उन आँखों में अब ख़्वाहिशें गुम हैं
धूप-छाँव बनकर रह गई ज़िन्दगी !
न तारों का अँगना
न झूला , न सपना
कई बचपन खो गए
चलते हैं कई आज खुद को उठाये
चार कन्धे साथ नहीं जिनसे जाते-जाते
बतियाते जाते कुछ कहे-अनकहे किस्से
ज़िन्दगी के दुःख -ख़ुशी के साझा पल
वे साथी , वह प्रीतम सब बेबस कितने
जीवन बिछड़ अपनों से उन्हीं के पास
अंतिम विदाई बाद वापस आता नहीं !
वह सहज ही होते तुम्हारे जीवन में साथियों
राम, कृष्ण न सही साधारण जन होते
या हनुमंत से भक्त होते
अगर पूछने का अधिकार है उनको
बताओ ,बताओ कहाँ हैं सारे वादे
प्रथम मेरा देश, हित जन-जन का !
भविष्य बच्चों का उनके अब किनके हवाले
असमय मौत गले लगा गई
लाखों को लील गई काल बन
ढक लो नाक , मुँह सबके जीवन की खातिर
विनती है सावधानी बरतो जन-जन के लिए।
जीवन अनमोल है आता नहीं जाने के बाद
न रैली , न मेला ,न उत्सव सब छूट जाता।
कान बंद कर लो झूठे वादे अब न लुभाए
कोई पूछ कर बताये अब क्या लौटा पाएँगी
सत्ता की ताकतें खो चुके अनमोल जीवन
हर अमावस के बाद चाँदनी ज़रूर है खिलती
हर मौत के बाद लेकिन कहानी रह जाती अधूरी !
रेखा भाटिया