प्रेम मंदिर वृंदावन धाम से छोटी काशी जयपुर पधारी जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी ने नौ दिवसीय धारावाहिक विलक्षण दार्शनिक प्रवचन श्रृंखला के दूसरे दिवस पर श्रद्धालु श्रोताओं की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए बताया कि दिव्य भगवान का दिव्य अंश ‘आत्मा’ होने के कारण हमारा सनातन संबंध केवल भगवान से ही है और भगवत्प्राप्ति के लिए ही ये अमूल्य देवदुर्लभ मानव-देह हमें प्रदान किया गया है। लेकिन अनादिकाल से अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाने के कारण और स्वयं को देह मानने के कारण ही हम संसार मे आसक्त हैं,
उसी को अपना मानते हैं और कर्म-बंधन में बंधते चले जाते हैं। इसी के परिणामस्वरूप चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुये आज तक दु:ख भोग रहे हैं। इन दु:खों से छुटकारा पाने के लिये हमें भगवान के साथ अपने संबंध ज्ञान को दृढ़ करके उनके शरणागत होना होगा और शरणागत होने के लिये संसार की नश्वरता और असारता पर बार-बार विचार करके मन को वहाँ से विरक्त करना होगा।
शरणागति के स्वरूप को विस्तार से स्पष्ट करते हुए उन्होनें बताया कि पूर्ण कर्तृत्वाभिमान रहित अवस्था का नाम ही शरणागति है। साथ ही अनेकानेक उदाहरणों द्वारा भगवान की भक्तवत्सलता का वर्णन करते हुए उन्होने बताया कि भगवान अपने शरणागत भक्त के क्रीत दास बन जाते हैं,उस भक्त के आगे अपनी भगवतत्ता भूल जाते हैं। आगे उन्होनें शरणागति का अर्थ स्पष्ट करते हुये बताया गया कि अपने जीवन की डोर भगवान के हाथ में सौंपकर अनासक्त भाव से संसार में कर्म करना ही शरणागति है। एक अबोध शिशु की भांति पूर्ण साधनहीन निश्छल बनकर व्याकुलतापूर्वक मांगने से ही भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त हो जाती है और भवबंधन छूट जाता है।
संयोजक शरद गुप्ता ने बताया कि आगे इसी प्रवचन श्रंखला में श्रीधरी दीदी द्वारा भक्ति मार्ग की विवेचना करते हुये कलियुग में सर्वसुगम सर्वसाध्य साधना भक्ति कैसे की जाय, इसका निरूपण किया जाएगा। 22 जून से प्रारम्भ हुए ये दिव्य प्रवचन प्रतिदिन साँय 6.00 बजे से 8.00 बजे तक 30 जून तक न्यू सांगानेर रोड़ सोडाला स्थित हॉटेल रॉयल अक्षयम में आयोजित किए जा रहे हैं। आज प्रवचन का दूसरा दिन था। प्रवचन के साथ-साथ सभी भक्तजन संकीर्तन के रस में भी सराबोर हो रहे हैं और रूपध्यान के माध्यम से साधना का अभ्यास कर रहे हैं।