न्यू सांगानेर रोड़ सोडाला स्थित हॉटेल रॉयल अक्षयम में आयोजित नौ दिवसीय धारावाहिक प्रवचन श्रृंखला के पांचवे दिन जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की शिष्या सुश्री श्रीधरी जी ने भक्तों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए बताया कि भक्ति के बिना कोई भी जीव भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता। वह चाहे कर्मी हो, योगी हो, ज्ञानी हो लेकिन भक्ति का अवलंब तो सबको लेना ही पड़ता है तभी उनको लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
आगे उन्होने कर्मयोग के स्वरूप को स्पष्ट करते हुये बताया कि ईश्वर भक्ति युक्त कर्म ही कर्मयोग है अर्थात नित्य निरंतर प्रभु से प्रेम करते हुये संसार में अनासक्त भाव से कर्म करना ही कर्मयोग है। जैसे गोपियाँ गृहस्थ के सारे कर्म करते हुये भी निरंतर कृष्ण भक्ति में तल्लीन रहती थीं।
ऐसा कर्मयोग जीव को ईश्वर से मिला सकता है लेकिन अज्ञानतावश हम लोग उल्टा कर्मयोग करते हैं। मन को निरंतर संसार में आसक्त रखकर केवल तन से ईश्वर भक्ति का स्वांग करते हैं, इसलिए लक्ष्य से और दूर होते जाते हैं। अतः कर्मयोग को ठीक से समझकर मन को निरंतर हरि-गुरु में रखते हुये संसार के समस्त कार्य करने चाहिए। ऐसा करने से कर्म बंधन नहीं होता और जीव अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
आगे फ़िर ज्ञान मार्ग की विवेचना करते हुये उन्होंने कहा कि अपने आप को ही ब्रह्म मानने वाला ज्ञानी भी अंत में माया से हारकर सगुण साकार भगवान की शरण में जाता है तभी भगवत्कृपा से उसे वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है और उसकी माया निवृत्ति होती है। प्रवचन के अंत में उन्होंने कलियुग में हरिनाम संकीर्तन रूपी साधन को ही सर्वश्रेष्ठ बताते हुये संकीर्तन की महिमा पर प्रकाश डाला। पश्चात श्रीमद युगल सरकार की आरती करवा कर आज के प्रवचन को विश्राम दिया।
संयोजक शरद गुप्ता ने बताया कि प्रवचन 30 जून तक प्रतिदिन साँय 6.00 बजे से 8.00 बजे तक आयोजित किए जाएंगे।