रामेश्वरम्….राम और कलाम की भूमि- कुलदीप शर्मा 

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 शंख के आकार के रामेश्वरम् द्वीप के कण-कण में राम हैं….उनके पराक्रम, धैर्य, समन्वय की शाश्वत अनुभूतियां हैं। इस द्वीप में रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग, अग्नितीर्थम्, धनुषकोडि, पंचमुखी हनुमान, सीता कुई, विभीषण का मंदिर हर स्थान अद्धभुत, अलौलिक है…उतना ही अनूठा, प्रेरक है यहां भारत के महान् पुत्र एपीजे अब्दुल कलाम का स्मारक। 

 इस स्मारक में उनकी जीवन-झांकी चित्रों, छवियों और स्मृति चिन्हों में संजोयी हुई है। कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम् मंदिर के नज़दीक एक साधारण बस्ती के एक छोटे-से घर में हुआ था। तब यह घर एक ‘ झोंपड़ी ‘ था। अब यह एक तंग गली ‘ मस्जिद स्ट्रीट ‘ में दुमंजिला मकान है, जिसे ‘ हाउस ऑफ कलाम ‘ के नाम से जाना जाता है। मकान का नंबर है – 12/7 कलाम के पिता का नाम जैनुलाब्दीन और माता का नाम आशियम्मा था। इसलिए कलाम का पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है। जैनुलाब्दीन मछुआरों को किराये पर नाव दिया करते थे। संयुक्त परिवार की आर्थिक तंगी के कारण कलाम ने बचपन में अखबार भी बेचा। वे साइकिल पर घूम-घूम कर अखबार बांटा करते थे। रामेश्वरम् की पंचायत के प्राथमिक स्कूल में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। पुनर्निर्माण के उपरांत वर्तमान में उनका यह घर भी स्मारक में बदल चुका है। जहां इस घर में एक अनंत दृष्टि वाले महान् वैज्ञानिक की संभावनाओं का प्रस्फुटन हुआ था। यह बात गौरवान्वित करती है कि रामेश्वरम् मंदिर के भव्य प्रवेश द्वार पर ऋषियों-देवों की पंक्ति में कलाम साहब की छोटी-सी प्रतिमा भी स्थापित की गयी है…वे यहां देवतुल्य हैं। संपूर्ण भारत का गौरव एपीजे अब्दुल कलाम हमारी युग-प्रेरणा हैं। मैंने पहले विचार किया था कि तमिलनाडु की सैर पर फेसबुक पर कोई लेख कलमबद्ध नहीं करूंगा। सिर्फ़ कुछ चित्र साझा करूंगा। 

लेकिन जब ‘ कलाम मेमोरियल ‘ को देखा जहां भारत के पूर्व राष्ट्रपति और ‘ मिसाइल मैन ‘ की क़ब्र है और इस स्मारक पर सैंकड़ों चित्रों और अनेक प्रतिकृतियों के साथ कलाम की जीवन-यात्रा को राष्ट्रीय एकता एवं प्रगति के संदेश के साथ प्रदर्शित किया गया है। इसे देखकर नये साल पर कुछ लिखने की अंर्तप्रेरणा हुई। यह स्मारक 27 जुलाई 2017 को एपीजे अब्दुल कलाम की द्वितीय पुण्यतिथि पर राष्ट्र को समर्पित किया गया। डीआरडीओ और इसरो के सहयोग से बने इस स्मारक में अनेक रॉकेट और मिसाइल की प्रतिकृतियां प्रदर्शित की गयी हैं। राष्ट्रपति भवन के मुख्य गुम्बद की प्रतिकृति के नीचे कलाम साहब की क़ब्र है। जिसके चारों ओर गलियारों व कक्षों में उनकी जीवन-झांकी है। इस भवन का मुख्य द्वार ‘ इंडिया गेट ‘ की प्रतिकृति है। स्मारक के निर्माण के लिए पूरे भारतवर्ष से नदियों और रेत को लाकर उनका सम्मिश्रण किया गया। 

 उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु के रामनाथपुरम् जिले में स्थित रामेश्वरम् द्वीप में यह स्मारक हमें भारत के सामर्थ्य, समन्वय और एकता का परिचय देता है। वहीं मुझे यह देखकर अत्यन्त गर्व की अनुभूति हुई कि इस स्मारक में राजस्थान के जैसलमेर के पीले पत्थरों ‘ सेंड स्टोन ‘ का काफ़ी उपयोग हुआ है। रामेश्वरम् के सुनहरे द्वीप पर मरुभूमि के स्वर्णिम पत्थरों के इस अनूठे शिल्प ने गौरवान्वित किया। यह प्रसन्नता तब और बढ़ गयी जब स्मारक के एक कक्ष में सन् 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के जीवंत दृश्य को प्रदर्शित करती भव्य प्रतिकृतियां देखी। स्मारक के कक्षों में शेखावाटी भित्ति शैली के चित्र भी गौरवान्वित करते हैं। कलाम मेमोरियल का पग-पग अनुभूतियों से भरपूर है। यहां वीणा वादन करते हुए कलाम की कांस्य प्रतिमा भी है। एक कक्ष में वह श्रीमद्भगवद्गीता, बाइबिल और क़ुरान रखी है, जिनका वे अध्ययन- मनन करते थे। कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को शिलांग में आईआईएम के छात्रों को एक सेमिनार में संबोधित करते हुए हृदयाघात से हुआ। वे अपने जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय रहे। उस दिन कलाम अपने साथ जो सामान लेकर शिलांग गये थे। वह इस स्मारक में प्रदर्शित किया गया है। इसमें दो राइटिंग बुक भी हैं, जिसमें कलाम की हैंड राइटिंग में कुछ नोट्स लिखे हैं, साथ ही कुछ पेपर हैं, एक स्पाइरल बाइडिंग वाली बुक है….यह सामग्री उनकी अध्ययनशीलता का प्रेरक संदेश देती है। जिस झोंपड़ी में कलाम का जन्म हुआ । उसकी पेंटिग भी इस स्मारक में लगी हुई है। एक अन्य पेंटिग में कलाम एक रॉकेट के पार्ट को अपनी साइकिल पर बांध कर ले जा रहे हैं। सन् 1963 में इसरो ने पहली बार अपने जिस रॉकेट को तिरुवनंतपुरम के थुम्बा स्टेशन से लॉन्च किया था। उसे कई पार्ट्स में लॉन्चिग पैड तक साइकिल के पीछे बांध कर ही ले जाया गया था। कलाम भी महान् अंतरिक्ष विज्ञानी विक्रम साराभाई की उस छोटी-सी टीम का एक अहम हिस्सा थे। इस स्मारक के अंदर मोबाइल और कैमरा ले जाने की सख़्त मनाही है। इसलिए कलाम की स्मृतियों से जुड़े कुछ चित्र गूगल सर्च कर साझा कर रहा हूं। यह छोटा-सा स्मारक बड़ा संदेश देता है। कलाम की लिखी कुछ पुस्तकें भी यहां प्रदर्शित हैं। कलाम जिन्होंने कहा था…. ” सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो सूरज की तरह जलें। ” यह स्मारक भारत के ‘ पीपुल्स प्रेसिडेंट ‘ को सच्ची श्रद्धांजलि है। उनका एक स्मारक दिल्ली में भी आईएनए के पास दिल्ली हाट में स्थित है। जैसा कि विदित है, रामेश्वरम् प्रेरणा भूमि है। यह राम के अनेक अद्भुत गुणों को युगों से व्यक्त करती आ रही है। यहां आकर हम राम की जितनी अनुभूति करेंगे उतना ही अधिक स्वयं को राम के करीब पायेंगे। जैसे कि मैंने धनुषकोडि पर आकर उस गिलहरी का स्मरण किया जिसने नल-नील और सुग्रीव की वानर सेना के साथ ‘ राम- सेतु ‘ बनाने में योगदान दिया था। गिलहरी के प्रति राम का स्नेह युगों से हमें शिक्षा देता आया है। धनुषकोडि के समीप सागर-तट पर एक टीले पर कोठंडारामस्वामी का प्राचीन मंदिर है। इसे विभीषण का इकलौता मंदिर भी कहा जाता है।

 इस मंदिर के तीन तरफ समुद्र है। प्राकृतिक दृष्टि से यह बहुत सुंदर स्थल है। यहीं पर लंका- विजय के बाद राम ने विभीषण का राज्याभिषेक किया था। मंदिर में राम, लक्ष्मण, सीता के साथ विभीषण की प्रतिमा है। यह स्थल राम के मैत्री धर्म को दर्शाता है। सन् 1964 में जब पूरा धनुषकोडि समुद्री तूफान में नष्ट हो गया था। सिर्फ़ यह मंदिर ही उस आपदा में सुरक्षित रहा था। भयंकर चक्रवात में भी यह प्राचीन मंदिर अप्रभावित रहा।कहते हैं, मंदिर से कुछ दूरी पर ऋषि भृंगी का आश्रम था। जहां राम कुछ दिन ठहरे थे। धनुषकोडि आकर राम के लंका- विजय के पराक्रम की व्यापकता को अधिक गहराई से समझा जा सकता है। राम के प्रयत्नों की अनुभूति की जा सकती है। सेतु-बंध के लिए राम ने तीन दिन तक सागर का कई जग़हों से निरीक्षण किया, फिर इस जग़ह को चुना। राम- सेतु निर्माण में प्रयुक्त कुछ शिलाएं रामेश्वरम् में पंचमुखी हनुमान मंदिर के सात सौ वर्ष प्राचीन मठ में रखी हुई हैं। इस मठ की भीतरी दीवार पर गोस्वामी तुलसीदास और मठ के विगत डेढ़ सौ वर्ष में प्रमुख रहे साधुओं के चित्र लगे हैं। यहां एक सूचना पट्ट पर अंकित है कि सन् 1964 के भयंकर चक्रवात से हुए उथल-पुथल के बाद यह शिलाएं समुद्र किनारे अग्नितीर्थम् पर प्राप्त हुई। जिन्हें इस मठ में सुरक्षित रखा गया। विदित है कि 22 दिसंबर, 1964 की आधी रात को यहां प्रलयंकारी चक्रवात आया था। जिसने तीन दिन तक तबाही मचायी। रामेश्वरम् कस्बे की पूरी आबादी ने रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के विशाल मंदिर के सुदृढ़ गलियारों में शरण ली। इसलिए यहां जनहानि कम हुई। लेकिन यहां से 18 किलोमीटर दूर बसे धनुषकोडि के निवासी इस तूफ़ान की चपेट में आ गये। तब धनुषकोडि एक चहल-पहल वाला कस्बा था। यहां रेलवे स्टेशन, डाकघर, चर्च सहित बड़ी संख्या में भवन बने हुए थे। धनुषकोडि के एक ओर हिन्द महासागर की मन्नार की खाड़ी है और दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी। श्रीलंका का थल्लाई मन्नार शहर यहां से सिर्फ़ 27 किलोमीटर दूर है। वैसे इस समुद्री क्षेत्र को ‘ शांत समुद्र ‘ कहा जाता है लेकिन सन् चौसठ के चक्रवात में करीब दो हजार लोगों को समुद्र की चौबीस फीट ऊंची प्रचंड तूफ़ानी लहरें अपने साथ बहा ले गयीं। धनुषकोडि के समुद्री रेलवे पुल पर खड़ी यात्री ट्रेन ‘ पंबन- धनुषकोडि पैसेंजर ‘ समुद्र में बह गयी। जिसमें करीब तीन सौ यात्री बैठे थे। तब से धनुषकोडि ‘ घोस्ट टाउन ‘ घोषित है। यहां पर सूर्यास्त के बाद रुकने की मनाही है। दो दिन की रामेश्वरम् द्वीप यात्रा में हमें अहमद भाई जैसे मिलनसार कार-ड्राइवर मिले। जिन्होंने बहुत अपनेपन से हमें रामेश्वरम् घुमाया। मण्डपम् रेलवे स्टेशन पर भी रात को उन्होंने ही छोड़ा। कुछ चेहरे ज़िदगी में हमेशा याद रहते हैं। नौज़वान अहमद को भी मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। मैं रामेश्वरम् घूमते हुए सोच रहा था साठ साल पहले इस द्वीप ने बहुत दर्दनाक मंजर झेला। वह दिसंबर के आख़िरी दिन ही थे। आज यह द्वीप एक नये उत्साह, उल्लास और आत्मबल के साथ फिर खड़ा है। रामेश्वरम् द्वीप की यह कथा राम से कलाम तक अनुभूतियों से भरी हुई तो है ही। मानव के अथक संकल्प और विनाश के बाद नव-निर्माण की भी अनूठी साहसिक गाथा है। जीवन में विपदाओं के कोई थपेड़े सदा के लिए मनुष्य को तोड़ नहीं सकते…रामेश्वरम् द्वीप इसका एक प्रेरक उदाहरण है। विनोबा भावे ने कहा था कि भारत में सिर्फ़ अध्यात्म और विज्ञान रहेगा….रामेश्वरम् द्वीप विनोबा जी की इस बात का सुंदर प्रमाण है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति के साथ हमने तमिलनाडु की सांस्कृतिक राजधानी और प्राचीन मंदिरों के शहर मदुरै के लिए प्रस्थान किया। मदुरै का वैभव ढ़ाई हजार वर्ष पहले भी उत्कर्ष पर था। वैगई नदी के किनारे स्थित मदुरै का मीनाक्षी अम्मन मंदिर अपने सौंदर्य और आध्यात्मिक शक्ति के लिए विश्व- विख्यात है। मदुरै मॉं पार्वती ‘ मीनाक्षी अम्मा ‘ और शिव ‘ सुंदरेश्वर ‘ के साथ ही उनके पुत्र कार्तिकेय ‘ मुरुगन ‘ की भी जाग्रत भूमि है। भगवान मुरुगन को तमिलों का देवता माना जाता है। तमिल संस्कृति की गौरव भूमि मदुरै भगवान विष्णु के भव्य मंदिरों का भी शहर है।


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