वृंदावन विहार पत्रकार कॉलोनी रोड़ स्थित ‘प्रेम सत्संग भवन सदन’ में 18 मई से 26 मई तक आयोजित नौ दिवसीय विलक्षण दार्शनिक प्रवचन श्रंखला के द्वितीय दिवस जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी ने श्रद्धालु श्रोताओं की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए कर्मयोग के स्वरूप को स्पष्ट करते हुये बताया कि ईश्वर भक्ति युक्त कर्म ही कर्मयोग है, अर्थात नित्य निरंतर प्रभु से प्रेम करते हुये संसार में अनासक्त भाव से कर्म करना ही कर्मयोग है।
जैसे गोपियाँ गृहस्थ के सारे कर्म करते हुये भी निरंतर कृष्ण भक्ति में तल्लीन रहती थीं। ऐसा कर्मयोग जीव को ईश्वर से मिला सकता है लेकिन अज्ञानतावश हम लोग उल्टा कर्मयोग करते हैं। मन को निरंतर संसार में आसक्त रखकर केवल तन से ईश्वर भक्ति का स्वांग करते हैं, इसलिए लक्ष्य से और दूर होते जाते हैं। अतः कर्मयोग को ठीक से समझकर मन को निरंतर हरि-गुरु में रखते हुये संसार के समस्त कार्य करने चाहिए। ऐसा करने से कर्म बंधन नहीं होता और जीव अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने इसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। सुश्री श्रीधरी जी ने अनेक शास्त्रीय प्रमाणों, तर्क सम्मत युक्तियों एवं अनेकानेक उद्धरणों के माध्यम से संसार के स्वरूप पर भी प्रकाश डाला,उन्होनें बताया की संसार में जिस सुख का अनुभव हम करते हैं वो वास्तव में सुख का भ्रम है, वो क्षणिक और नश्वर सुख है। वास्तविक सुख तो एक बार मिलने पर सदा के लिए प्राप्त हो जाता है, वह अनंत मात्रा का होता है और प्रतिक्षण बढ़ता जाता है। इसलिए सदा-सदा के लिए आनंदमय होने के लिए हमें ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए और संसार के वास्तविक स्वरूप को भलीभाँति समझकर, यहाँ के भ्रामक सुख को मृगतृष्णा के समान जानकर त्याग देना चाहिए।
अंत में ‘राधे गोविंदा भजो’ संकीर्तन के साथ एवं हरि-गुरु आरती के साथ उन्होंने प्रवचन को विश्राम दिया।
संयोजक शरद गुप्ता ने बताया कि आगे इसी प्रवचन श्रंखला में श्रीधरी दीदी जी द्वारा भक्ति मार्ग की विवेचना करते हुये कलियुग में सर्वसुगम सर्वसाध्य साधना भक्ति कैसे की जाय, इसका निरूपण किया जाएगा। प्रवचन प्रतिदिन साँय 6.00 बजे से 7.30 बजे तक आयोजित किए जा रहे हैं।