सावन तो 22 जुलाई से लगेगा, लेकिन बारिश की इस झड़ी ने राजधानी जयपुर की सड़कों पर सितम ला दिया। सरकार, सियासत के पारखी कहेंगे कि पानी बरसा है तो सड़कें तो भरेगी ही… शायद इसीलिए चार जुलाई को राजस्थान विधानसभा में दिन भर चले सदन में सब कुछ हुआ… शोरगुल, धक्का -मुक्की सब कुछ। लेकिन सवाई जय सिंह जी के बसाये न्यारे शहर ‘ जयपुर ‘ की इस दुर्दशा पर सन्नाटा छाया रहा। पानी बरसने की अभी तो शुरुआत हुई है, पानी खूब आना चाहिए… हमारी आस बीसलपुर में सिर्फ 25 फीसदी पानी बचा है और अपना रामगढ़ तो बरसों से सूखा पड़ा है… ‘ मर गया रामगढ़ ‘ जैसे शीर्षक से ऊंची अदालत विचलित हो गई लेकिन सरकार के कानों में जूं नहीं रेंगी।
रामगढ़ बांध के पेटे में अठारह फीट मिट्टी जमा हो चुकी है…इसे कौन निकाले ? इस पर सारे महकमे बगलें झांकते हैं।
जयपुर में जो पानी बरसा है, क्या सड़कें सिर्फ इस पानी से थमी हैं… नहीं, इसमें जयपुर के लोगों और घरों के आंसू भी शामिल हैं…सड़कों पर पानी में कारें फंसी थीं, घंटों ट्रेफिक जाम था। जो सड़कों पर फंसे थे, उनके घरों में परिजनों के लिए पानी का घूंट पीना भी दुश्वार था। ‘ हे ईश्वर, रक्षा करना! ‘ यही प्रार्थना लोगों के दिल में थी।
…और स्वयं को ‘ गणतंत्र का गणेश ‘ मानने वाले, सदन को सुशोभित करने वाले हमारे विधायक….इन्हीं में से मुख्यमंत्री, मंत्री, नेता प्रतिपक्ष बनते हैं। ईश्वर की कृपा से इस बार जयपुर को खूब मिला है। लेकिन शहर की सड़कों पर सितम पर कल सदन में सन्नाटा अचंभित करता है।
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…अब दस जुलाई को सदन फिर बैठेगा, राज्य का बजट पेश होगा। जयपुर के लिए भी फिर कुछ सपने बुने जायेंगे…यह एक रीत है। सरकार चाहे किसी को हो। छह महीने पहले जो ‘ सरकार ‘ थे, उन्होंने बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और अब जो नये हैं, वे इतने नये हैं कि वे जब तक जानेंगे… कुछ और ऋतुएं निकल चुकी होगी।
सड़कों पर सितम यूं ही बरपा रहेगा…. पानी में आंसू मिल बहते रहेंगे… उस शहर के आंसू जिसे सवाई जय सिंह जी ने अष्ट सिद्धि और नव निधि के हिसाब से बसाया था। जिसके लिए इतिहासकार फिलिप गुडल्ला ने अपनी पुस्तक ‘ दी लिबरेटर्स ‘ में
लिखा था – ” जयपुर संसार के एथेंस, रोम, येरुसलम, पेरिस व लंदन के समान सुंदर शहर है। “
विदेशी छायाकार कार्टर ब्रेसर ने लिखा था कि ‘ जयपुर नगर, सौंदर्य में पगे हुए संसार का एक अनूठा स्मृति चिन्ह है। ‘
ऐसा लगता है कि सरकार और सियासी नुमांइदे दोनों मिलकर जयपुर को एक ऐसा ‘ स्मृति चिन्ह ‘ ही बना देना चाहते हैं जो कि कभी सुंदर, न्यारा शहर था।
शहर के ड्रेनेज सिस्टम की विफलता, अवरूद्ध नालों, गंदी गलियों, बेतरतीब नियोजन, टूटी सड़कों, सफाई व्यवस्था की नाकामी, जल निकास के रास्तों पर अतिक्रमण सबने मिलकर जयपुर को तहस -नहस कर दिया है। प्रशासन संवेदनहीन हैं और ‘ गणतंत्र के गणेश ‘ सोये हुए हैं।
जयपुर भगवान गणेश जी की नगरी है, वे पहाड़ पर जयपुर की स्थापना -काल से ‘ गढ़ गणेश ‘ में विराजे हैं। मोती डूंगरी गणेश जी मेवाड़ के मावली से पधारे हैं, जयपुर में नहर के गणेश जी, श्वेत सिद्धि विनायक सहित अनेक प्राचीन गणेश मंदिर भी हैं, जैसे कि बड़ी चौपड़ पर ध्वजाधीश गणेश मंदिर। गणेश जी सबकी सुनते हैं, वे मंगलमूर्ति हैं। लेकिन ‘ गणतंत्र के नव -गणेश ‘ जो चुनावों में घर -घर जाकर वोट मांगते हैं, गरीब को गणेश कहते हैं… चुनाव बाद
उन्हें शहर की सुध क्यों नहीं आती। ‘ सड़कों पर सितम हो और सदन मौन रहे। ‘ यह असहनीय है।
मैं पिछले एक दशक में पत्रकारिता से कुछ दूर और सियासत के कुछ करीब रहते हुए सदन के स्पंदन का साक्षी रहा हूँ। इसलिए कह सकता हूँ कि यदि मंत्री, विधायक ठान लें तो प्रशासन की क्या बिसात कि वह काम नहीं करे। लेकिन पुरानी सरकार हो या यह नयी सरकार…राजधानी जयपुर के सौंदर्य, विकास के नाम पर नेताओं के मुंह में मानो दही जम जाता है…अफसर उन पर हावी हो जाते हैं क्योंकि वे ‘ कमजोर नब्ज ‘ जानते हैं।
ज्यादा कुछ क्या कहें। सावन के महीने में 11 अगस्त को फिर डिग्गी कल्याण जी की चौड़ा रास्ता के ताड़केश्वर मंदिर से वार्षिक लक्खी पदयात्रा है। लाखों श्रद्धालु डिग्गी कल्याण धणी के दर की ओर चलेंगे…
अगर उस दिन ऐसी ही बारिश हुई तो ! ….क्या कहूं ? ‘ हे ईश्वर रक्षा करना। ‘
मैं तकरीबन रोजाना पिछले कई सालों से सांगानेर, डिग्गी रोड, रिंग रोड के ग्रामीण इलाकों में आता -जाता हूँ। सड़कों की दुर्दशा ने मुझे नये रास्ते खोजने पर मजबूर किया और मैं ऐसे कई गांवों के हालात से अच्छी तरह वाकिफ हो चुका हूँ। जहाँ पिछली सरकार में भी सड़कों पर गड्ढे थे, नयी सरकार में कुछ उम्मीद बंधी लेकिन अब वही
‘ ढ़ाक के तीन पात ‘ जैसे हालात हैं। अप्रैल महीने में ही लोकसभा चुनाव में वोट लेने नेता गली -गली घूमे थे। वे तभी जाग जाते कि बरसात से पहले जयपुर में युद्धस्तर पर काम होना चाहिए…लेकिन ‘ चुनाव खत्म, नेता मस्त! ‘…कार्यकर्ता पस्त और जनता सदा त्रस्त !
शिकायत लिखने भर से कुछ नहीं होगा। कुछ सुझाव देना चाहता हूँ। जैसे कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु, जो नये भारत के सामर्थ्य की पहचान है। वहाँ
‘ बेंगलुरु विकास विभाग ‘ अलग से है, यानी अलग मंत्रालय है।
जयपुर भी भारत की सांस्कृतिक, पर्यटन विरासत के गौरवशाली सामर्थ्य का प्रतीक है। चहुंदिशा में जयपुर का विकास तेजी से हो रहा है। उदाहरण के तौर पर कहूंगा कि बीस साल पहले मानसरोवर और प्रताप नगर हाउसिंग कॉलोनी तक जो जयपुर फैला हुआ था। आज सांगानेर, जगतपुरा, मुहाना को कभी का पार कर इनसे मीलों आगे तेजी से फैलता जा रहा है।
पिछली सरकार ने वोटों के लिए नये जिले बनाने की जिद में जयपुर शहर के दो टुकड़े करने की बेवकूफी दिखाई। बेहतर होता वह ‘ बेंगलुरु विकास विभाग ‘ की तर्ज पर जयपुर शहर के लिए एक पृथक विभाग बना देते। दो -दो मेयर बनाने, नगर निगम के टुकडे़ करने से हालात बिगड़े ही हैं… सरकारी मशीनरी बेलगाम है और पार्षद उनकी व्यथा वे ही जानें।
जो हुआ, सो हुआ। नयी सरकार से कुछ उम्मीदें हैं, क्योंकि नया नेतृत्व नयी सोच, नये जोश के साथ आता है, ऐसा सुनते आये हैं। इसलिए जयपुर जिसकी माटी में जन्मे, गलियों में पले -बढ़े, छात्र राजनीति और पत्रकारिता के जुनून में जयपुर का हर मौहल्ला छाना, सड़क किनारे इसके पेड़ों के नीचे चाय पीते हुए शहर से मुहब्बत की। पुराने बुजुर्गों से इस शहर के
दिलकश किस्से सुन इस गुलाबी नगरी से आशिकी हुई। जयपुर के जज्बातों की धुन सुनाने वाले सीताराम जी झालानी, वीर सक्सेना जी, श्याम आचार्य जी जैसे सिद्ध पत्रकार, प्रकाश शुक्ला जी, वकार -अल-अहद जैसे जयपुर के मतवाले आशिक और इस शहर के विशेषज्ञ, इस्लाम भाई पहलवान, नन्हें खान जी, उस्मान भाई जैसे मेरे बड़े भाई जिनकी जिंदगी में जयपुर की जिंदादिली सबसे पहले थी। ये सब आज इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन ऐसे काबिल लोगों की निगाहों से भी मैंने इस शहर को जाना है, समझा है, मुहब्बत की है।
आज यही आरजू है कि तीन साल बाद तीन सौ साल के होने जा रहे जयपुर को बचाने के लिए इसका विकास टुकड़ों में करने की बजाय बुलंद इरादों के साथ करें, जैसे दिल्ली का शीला दीक्षित ने किया था और जयपुर तो विकास की रिवायत रही है। सवाई जय सिंह जी द्वितीय से लेकर सवाई राम सिंह जी, सवाई मान सिंह जी द्वितीय तक और सर मिर्ज़ा इस्माइल तक।
एक किस्सा है कि जयपुर के प्रधानमंत्री सर मिर्ज़ा इस्माइल जयपुर में भारी बारिश आने पर शाम को पैदल ही अपने निवास जैकब रोड पर नाटाणियों के बाग ( वर्तमान जयमहल पैलेस होटल) से अपने कार्यालय गर्वनमेंट हॉस्टल ( वर्तमान पुलिस कमिश्नरेट) के लिए निकल पड़े। रास्ते में सड़क पर एक पेड़ गिरा देख कर तत्काल मुख्य अभियंता सनाड्य को तलब किया और पेड़ हटवा कर रास्ता खुलवाया।
जयपुर की विरासत, जज्बातों के ऐसे अनेक प्रसंग वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह जी शेखावत की पुस्तक ‘ म्हारो जयपुर, न्यारो जयपुर ‘ में संकलित है। जिसमें जयपुर की सुंदरता का बखान है।
हम जयपुर के बिरले ‘ नागरिक ‘
स्वर्गीय नंदकिशोर जी पारीक को नहीं भूल सकते। जिन्होंने जयपुर की अपनी साधक कलम से ‘ नगर परिक्रमा ‘ कुछ ऐसे की, जैसे ऋषि साधना करते हैं।
कर्पूर चंद जी कुलिश जैसे विलक्षण संपादक ने उनकी साधना को ‘ राजस्थान पत्रिका ‘ में प्रज्वलित रखा।
उनकी पुस्तक ‘ राज -दरबार और रनिवास ‘ में महाकवि पद्माकर का एक दोहा है –
” जय जयपुर सुरपुर सदृश
जो जाहिर चहुं ओर! “
नंदकिशोर पारीक जी ने अपनी पुस्तक में करीब चालीस साल पहले लिखा था ….
‘ जयपुर क्या था, और क्या हो गया है!! “
….चालीस साल में तो बहुत कुछ बदला है… ‘ सड़कों पर सितम है और सदन में सन्नाटा है। ‘…यह भी एक बदलाव है।
भैरोंसिंह जी शेखावत , राजमाता गायत्री देवी जी, भंवरलाल शर्मा जी आज जीवित होते तो कभी चुप नहीं रहते !