मेरा काम ही मेरा जुनून है- क्रिस्टीना ज़रीन

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दुनियाभर में गुलाबी शहर जयपुर के डिजायन्ड कपड़ों को बहुत पसंद किया जाता है। जयपुर में क्रिस्टीना ब्रांड (Christeena Brand Christeena Zareen) को लगातार बड़ी पहचान दिला रही हैं अल शैदाई फर्म से जुड़े क्रिस्टीना ब्रांड की ऑनर व फाउंडर क्रिस्टीना। अपने ब्रैंड को खास मुकाम पर पहुंचाने के लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष भी किया और अपने ब्रैंड को स्थापित भी किया। आज जयपुर में मानसरोवर में स्थापित क्रिस्टीना ब्रैंड अपनी खास पहचान रखता है।

क्रिस्टीना ज़रीन से माही संदेश मासिक पत्रिका के प्रधान संपादक रोहित कृष्ण नंदन की विशेष बातचीत।

जब बढ़े कदम

राजस्थान के जालोर  में जन्मी क्रिस्टीना के शब्दों में…
इत्तेफाक से मैं इस बिजनेस में आ गई। वर्ष 2002 की बात है, मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन तय डेट तक फॉर्म फिल नहीं कर पाई। इसके बाद मैंने नर्सिंग के लिए फॉर्म भरा जिसका कॉल लैटर भी आ गया लेकिन तब मेरे पापा ज़रीन सेम्युअल व मम्मी एलिजाबेथ ज़रीन को पता चला कि फैशन और इंटीरियर के क्षेत्र में जाने का मन बना चुकी हूँ और इस क्षेत्र में पहले से मेरी रुचि थी। इसलिए उन्होंने नर्सिंग के कॉल लैटर के बारे में तब नहीं बताकर बाद में बताया और मैंने डिजाइनिंग के क्षेत्र में अजमेर से अपनी स्टडी को कंपलीट किया। वो 2005-06 का साल था। इसके बाद मैं जयपुर आई और जॉब करने लगी। लेकिन मेरा मन अपने बिजनेस की ओर ही भागता था। मेरे पास हुनर था लेकिन फंड नहीं था, मैंने दो तीन बार कोशिश की अपना बिजनेस स्टार्ट करने की, किया भी लेकिन सिर्फ फेथ पर आगे बढ़ गई, पेपरवर्क नहीं किया, तो ठोकर भी मिली। इसने मुझे सिखाया कि बिजनेस में पेपरवर्क यानी कानूनी लिखा पढ़ी कितनी जरूरी है।

संघर्ष के साथ मिल सफलता

मदर टेरेसा को अपना आदर्श मानने वाली क्रिस्टीना कहती हैं कि क्रिश्चन लोग जल्दी विश्वास कर लेते हैं और विश्वास टूटता है तो बुरा लगता है। मेरे साथ जो बिजनेस में जो भी बुरा उन दिनों हुआ, वो शायद ईश्वर मुझे कुछ सिखाना चाहता था। मैंने अपनी गलतियों से सीखा और पॉजीटिव एनर्जी में मेरा विश्वास बढ़ता गया। 2014 में मेरे एक मित्र जो अब भी बिजनेस में मेरा साथ दे रहे हैं उन्होंने नए सिरे से बिजनेस को शुरू करने में मेरी मदद की और फंडिंग की, इस बार मैंने पेपरवर्क जरूर किया। मैं डिजायनर थी, मैंने जयपुर इंडस्ट्रियल एरिया में एक छोटी सी जगह ली, जहां अपनी एक मशीन स्थापित की। वहां मैं अपनी डिजाइन के मास्टर सैंपल तैयार कराती थी और काम लेकर आती थी, इसके बाद मैन्यूफेक्चरिंग यूनिट से पाला पड़ता था वहां मेरे ब्रांड के कपड़े तैयार होते थे जिनकी सप्लाई की जिम्मेदारी भी मेरी ही होती थी। लेकिन ये सब आसान नहीं था, दिक्कत आती थी सीजन में। क्योंकि मेन्यूफेक्चरिंग यूनिट सीजन में बहुत प्रेशर में होते थे और अपना खुद का काम भी किया करते थे। इस वजह से मेरे ऑर्डर लेट हो जाते। तब मैंने तय किया कि अपने डिजाइन के लिए मैन्युफेक्चरिंग यूनिट भी मेरा अपना होना चाहिए। तब मैंने मानसरोवर में ही दूसरी जगह लेकर 25 मशीनों के साथ अपना यूनिट तैयार कर लिया। ये साल 2014 था।
सीजन में काम बढ़ने लगा। बहुत काम मिलने लगा। बिजनेस ठीक चलने लगा। बहुत जल्द 25 मशीनों से शुरू किया काम मैंने 100 मशीनों की यूनिट तक पहुंचा दिया था। मेरा टारगेट था कि इस यूनिट को मैं 200 तक लेकर जाऊंगी। लेकिन इसी दौरान नोटबंदी हो गई। अचानक से पैसे का फ्लो अटक गया। कई बिजनेस नोटबंदी की वजह से प्रभावित हुए। 2015-16 में स्नैपडील से हम बिजनेस को पोर्टल पर लेकर आए। ऑनलाइन बिजनेस टेढी खीर है। आपको टिपिकल कम्यूनिकेशन करनी पड़ती है। एक टीम बनानी पड़ती है जबकि बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो प्रोफेशनल होते हैं। यहां थोड़ा पैसा ज्यादा मिलता है तो लोग स्विच कर जाते हैं, इससे बिजनेस डिस्टर्ब होता है। कुछ दिक्कतों के बाद 2018 में ऑनलाइन पोर्टल रजिस्ट्रेशन कराया और अब तो काफी पोर्टल पर क्रिस्टीना ब्रैंड आपको नजर आ जाएगा।

जब आप जॉब करती थीं, तब सोचा था अपनी कंपनी में किसी को जॉब दे पाएंगी ?

शौकिया रूप से कविताएं लिखना पसंद करने वाली क्रिस्टीना कहती हैं कि फिलहाल मैं सीजन में 250 से 300 लोगों को रोजगार दे पा रही हूं। बिजनेस में उतार-चढाव चलते हैं। लेकिन क्रिस्टीना की तो खासियत ही यही है कि हम पॉजीटिव एनर्जी के साथ इसे तैयार करते हैं। यही पॉजिटिव एनर्जी सर्कुलेट होनी चाहिएं ताकि पहनने वालों को अच्छा लगे और वे सुखद महसूस कर सकें, खुश रहें।

क्रिस्टीना ब्रैंड की विशेषताएं
क्रिस्टीना ने बताया कि अल शैदाई एक फर्म है, जबकि क्रिस्टीना एक ब्रैंड है जिसे मैंने शुरू किया है। महिलाओं के परिधान की बात करें तो समय समय पर डिजाइन बदल जाते हैं, फैब्रिक-फैशन-स्टाइल सब कुछ चेंज हो जाता है। ऐसे में कई ब्रैंड कॉपी करने लगते हैं। बड़े ब्रैंड्स के कपड़ों की नकल करने लगते हैं या उन्हें फॉलो करने लगते हैं। क्रिस्टीना ब्रैंड का फोकस परिधान की कंफर्टिबिलिटी पर ज्यादा रहता है। इसके अलावा हमारे खुद के डिजाइन ऐसे हैं जिन्हें पहनकर महिलाएं अच्छा महसूस करती हैं, पॉजिटिव एनर्जी फील करती हैं, उन्हें इस ब्रैंड के कपड़े पहना अच्छा लगता है। साथ ही कलर फैब्रिक भी क्वालिटी भी बेहतरीन होती है। कपड़ा पहनने में कम्फर्टेबल हो, इस पर बहुत ध्यान दिया जाने लगा है। पहले कुछ भी पहन लिया जाता था। अब मिक्स मैचिंग और कॉम्बीनेशन का जमाना है। नए प्रयोग किये जा रहे हैं। भारत की एक खास बात ये है कि इसमें सभी तरह के कलर्स के कपड़े पहने जाते हैं। साथ ही यहां कई मौसम भी बदलते हैं, उनके अनुरूप कपड़े के कलर और डिजाइन को भी पसंद किया जाने लगा है। क्रिस्टीना में मौसम के अकॉर्डिंग डिजाइन्स की भरमार है।

फैशन जो ट्रैंड में सबसे ज्यादा चल रहा है ?

गार्डनिंग में अभिरुचि रखने वाली क्रिस्टीना कहती हैं कि अभी की बात करें तो शरारा बहुत पहना जा रहा है। शरारा लौट कर आया है और पहले भी शरारा का फैशन चला था। अब इसे बहुत पसंद किया जा रहा है। क्रिस्टीना ब्रैंड का शरारा, कुर्ती और दुपट्टा खूब पहना जा रहा है और कुर्ती में सब तरह के प्रिंट पसंद किये जा रहे हैं, इनमें ट्रैडिशनल भी है, फूल पत्ती भी है और प्लेन भी।

कपड़े के मामले में ट्रैडिशनल बिजनेस अच्छा है ऑनलाइन ?

पैट लवर क्रिस्टीना कहती हैं कि प्रेक्टीकली देखा जाए तो अलग अलग तरह का बिजनेस अलग अलग तरह से ग्रो करता है। ऑफलाइन बिजनेस में यानी परंपरागत बिजनेस में ये होता था कि एक चेन बनती थी, होलसेलर होता था, फिर रिटेलर होता था और फिर आखिर में ग्राहक या एंड यूजर होता था। इस तरह एक कपड़ा फैक्ट्री में तैयार होकर कई चरणों से होता हुआ ग्राहक तक पहुंचता था। ऑनलाइन बिजनेस ने इस कड़ी को कमजोर किया है जिसका असर परंपरागत बिजनेस पर पड़ा है। यानी परंपरागत बिजनेस बेहतर था ? इस सवाल पर वे बोली कि ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि पहले होता था कि परिवार की महिलाएं मिलकर कपड़ों की खरीददारी करती थीं, बल्क में कपड़ा खरीदा जाता था। त्योहार शादी पर महिलाएं ही खरीददारी करती थीं। इससे परंपरागत बिजनेस बहुत ग्रो करता था। अब एकल परिवार हैं। महिलाएं अकेली रहती हैं। अकेले ऑनलाइन शॉपिंग पर फोकस ज्यादा बढ़ गया है।

पहले नोटबंदी, फिर अब कोरोना, बिजनेस कितना प्रभावित हुआ है ?

विभिन्न खेलों बैडमिंटन, क्रिकेट, शतरंज में रुचि रखने वाली क्रिस्टीना बताती हैं कि नोटबंदी की वजह से तो बहुत असर पड़ा है। महिलाएं जो गृहणियां होती हैं, वे अलग से बचत करती हैं। उसी बचत में से वे खरीददारी करती हैं। नोटबंदी की वजह से बचत का पैसा निकल गया। महिलाओं की परचेजिंग की पावर पर असर पड़ा। नोटबंदी के बाद अचानक ऑनलाइन बिजनेस में बढ़ोतरी हुई और कोरोना के बाद तो ऑनलाइन बिजनेस बढ़ना ही था।
बिजनेस के गुर आ गए हैं। बिजनेस अपने आप में कई चीजें सिखा देता है। पॉजीटिव रहना मेरी आदत भी है और विश्वास भी। बिजनेस के लिहाज से कहूं तो वस्त्र इंडस्ट्री एक साल पीछे चली गई है। क्योंकि नवंबर-दिसंबर में तैयार ऑर्डर अगले तीन-चार महीनों में निकलते हैं, सावों के टाइम में भी बिजनेस होता है लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के कारण ये सब प्रभावित हो गया। फैशन इंडस्ट्री जरूरत पर नहीं चलती, शौक पर चलती है, शौकिया लोगों की वजह से बाजार रन करना है। लेकिन कोरोना की वजह से लोगों के शौक पर असर हुआ है। लोग जरूरत पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।


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