स्कूल चले हम…..

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नवीन जैन (IAS)

हमारे राजस्थान के स्कूलों में भी आज गर्मी की छुट्टियों के बाद बच्चों का आना हुआ है और हम सब ने भी अपने अपने जीवन में इस पल को अच्छे या बुरे खयालों के साथ जिया है I यह ख्याल जब मेरे दिल में आया तो मुझे भी नॉस्टैल्जिया होने लगा I पुराना समय आंखों के सामने फिल्म की रील की तरह घूमने लगा I दिसंबर-जनवरी की सर्दी मजेदार होती थी और फरवरी आते-आते परीक्षा की तैयारी का भूत सताने लगता और जो बच्चे सेल्फ मोटिवेटेड होते हैं, फरवरी और मार्च का महीना किताबों में बिता देते हैं I अप्रैल का महीना एक नए जीवन जैसा लगता था और नई किताबों की खुशबू लेते हुए उन पर कवर चढ़ा देते थे और मई आते ही उस दिन का इंतजार होता था जिस दिन से 42 दिन की गर्मी की छुट्टियां शुरू होगी I

जून महीना शायद भारत के ज्यादातर बच्चों के दिल का तारा है ; यदि आप ट्यूशन और एक्स्ट्रा क्लास के जंजाल में नहीं हो I बेचारा जुलाई कितनी ही गालियां खाता है क्योंकि जैसे-जैसे यह करीब आता दिखता है, बहुत से लोगों के दिल बोझिल होने लगते हैं I दुश्मन जैसा दिखने वाला जुलाई आने वाले पूरे साल की झलक भी दिखाता था इस साल की पढ़ाई कितनी मुश्किल वाली है I उम्मीद करता हूं कि हमारे सरकारी विद्यालयों के बच्चे जुलाई के महीने में अपने-अपने स्कूलों में जाकर सपने देखेंगे, हम सब उन्हें वह तमाम अवसर प्रदान करेंगे जिनकी व्यवस्था भी है और बच्चों को दरकार भी ; सही अवसर मिले तो बारां का शाहाबाद हो या बाड़मेर का गढ़रा रोड या फिर प्रतापगढ़ का अरनोद हो; सभी जगह के बच्चे जब स्कूल पूरा कर आगे जीवन रूपी युद्ध लड़े तो सबके पास एक जैसे हथियार और एक जैसी लड़ने की क्षमता हो I


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